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जन-गण-मन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जन गण के मन में बसे उस अधिनायक की जय हो, जो भारत के भाग्यविधाता हैं!
Oh! the ruler of the mind of the people,
Victory be to You, dispenser of the destiny of India!
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
उनका नाम सुनते ही पंजाब सिन्ध गुजरात और मराठा, द्राविड़ उत्कल व बंगाल
Punjab, Sind, Gujrat, Maharastra, Drabir (South India), Utkala (Orissa), and Bengal,
विंध्य हिमाचल जमुना गंगा उच्छलजलधितरंग
विन्ध्य, हिमाचल व यमुना और गंगा से हिन्द महासागर (जलधि ) तक उत्साह की तरंगें उठती हैं
the Bindhya, the Himalayas, the Jamuna, the Ganges, and the oceans with foaming waves all around
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जयगाथा ।
सब तेरे पवित्र नाम पर जाग उठते हैं, सब तुझसे पवित्र आशीष पाने की अभिलाषा रखते हैं
सब तेरे ही जयगाथाओं का गान करते हैं ।
Wake up listening to Your auspicious name, ask for Your auspicious blessings,
And sing to Your glorious victory.
जन-गण-मंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे,जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे ॥
जनगण के मंगल दायक की जय हो, हे भारत के भाग्यविधाता !
विजय हो विजय हो विजय हो, तेरी सदा सर्वदा विजय हो ॥
Oh! You who impart well being to the people! Victory be to You, dispenser of the destiny of Bharat!
Victory, victory, victory to Thee!
(refrain repeated four times)
‘जन-गण-मन’ की रचना बंगला भाषा में हुई, जिसका उच्चारण,शब्दार्थ आदि संस्कृत/हिन्दी से कहीं-कहीं बिलकुल भिन्न है। देवनागरी में उसे उतारते समय हिन्दी की प्रकृति को यथासम्भव ध्यान में रखा गया है।
१.उदाहरण के लिए ‘अधिनायक’ का अर्थ बंगला में ‘कप्तान’ होता है,जबकि हिन्दी में ‘तानाशाह’।
२.संस्कृत की पारम्परिक उच्चारण –व्यवस्था (शब्दानुशासन) के अनुसार बंगला में भी शब्द के प्रारम्भ में आनेवाले ‘य’ का उच्चारण ‘ज’ होता है। इसी प्रकार, ‘दुःखत्राता’ का उच्चारण ‘दुःखत्त्राता’ के रूप में और ‘शंखध्वनि’ का ‘शंखद्ध्वनि’ के रूप में होगा। जो हिन्दी के अध्यापक इस संस्कृत शब्दानुशासन को नहीं जानते हैं,वे प्रसाद जी के प्रयाण-गीत ‘बढे चलो’ में ‘दृढप्रतिज्ञ’ का सही उच्चारण ‘दृढप्प्रतिज्ञ’ नहीं कर पाते हैं,जिससे उनके काव्यपाठ का प्रवाह बाधित होता है।
३.बंगला में ‘स’ ध्वनि का उच्चारण ‘श’ के रूप में होता है: आसे>आशे,सुनि>शुनि,सिन्धु>शिन्धु, स्वप्न>श्वप्नो आदि।
४.बंगला में सामान्यतः ‘अ’ का उच्चारण ‘ओ’ होता है,जबकि लिखा ‘अ’ ही जाता है,जैसे छिल>छिलो,बंधु>बोंधु, मंगल>मोंगोलो,बंग>बोंगो, तरंग>तरोंगो आदि।
५. मूल पाठ में बंगला की उच्चारण – व्यवस्था के अनुसार ‘गुजराट’ और ‘खृष्टानी’ शब्द हैं।
६.अन्य लोकभाषाओं की तरह बंगला में भी ह्रस्व-दीर्घ के उच्चारण में काफ़ी उदारता बरती जाती है। इस प्रकार ‘रात्रि’ में ‘त्रि’ को दीर्घ और ‘गाहे’ में ‘हे’ को ह्रस्व पढा जायेगा।